Hamara Ab Koi Humdum Nahin Hai: A Heartfelt Ghazal by Raunak Karn Exploring Love and Separation

Hamara Ab Koi Humdum Nahin Hai | Raunak Karn

हमारा अब कोई हमदम नहीं है

By Raunak Karn - Celebrated Poet

ग़ज़ल

हमारा अब कोई हमदम नहीं है
चलो इस बात का भी ग़म नहीं है

पढ़ाई नौकरी फिर घर चलाना
कोई तो और अब आलम नहीं है

रुकी है बात इक इज़हार पे बस
ये दूरी भी तो बोलो कम नहीं है

गए वो वक़्त जब मस्ती में थे हम
वो प्यारा दौर वो मौसम नहीं है

किया है याद उसको यादों में ही
हमारे पास तो अल्बम नहीं है

फिरे हैं नोचने वाले ही 'रौनक'
किधर देखें कहीं आदम नहीं है

Explore Raunak Karn's ghazal on love and loss, reflecting on nostalgia, separation, and the bittersweet journey of life's responsibilities.