Koi Dam Bhi Mai Kab Ander Raha Hun - Jaun Elia
July 26, 2022
कोई दम भी मैं कब अंदर रहा हूँ || Ghazal Of Jaun Elia - Opal Poetry
कोई दम भी मैं कब अंदर रहा हूँ
लिए हैं साँस और बाहर रहा हूँ
धुएँ में साँस हैं साँसों में पल हैं
मैं रौशन-दान तक बस मर रहा हूँ
फ़ना हर दम मुझे गिनती रही है
मैं इक दम का था और दिन भर रहा हूँ
ज़रा इक साँस रोका तो लगा यूँ
कि इतनी देर अपने घर रहा हूँ
ब-जुज़ अपने मयस्सर है मुझे क्या
सो ख़ुद से अपनी जेबें भर रहा हूँ
हमेशा ज़ख़्म पहुँचे हैं मुझी को
हमेशा मैं पस-ए-लश्कर रहा हूँ
लिटा दे नींद के बिस्तर पे ऐ रात
मैं दिन भर अपनी पलकों पर रहा हूँ
Jaun Elia
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया