Abhi Ek Shor Sa Utha Hai Kahin - Jaun Elia

 अभी इक शोर सा उठा है कहीं || Ghazal Of Jaun Elia - Opal Poetry


अभी इक शोर सा उठा है कहीं
कोई ख़ामोश हो गया है कहीं

है कुछ ऐसा कि जैसे ये सब कुछ
इस से पहले भी हो चुका है कहीं

तुझ को क्या हो गया कि चीज़ों को
कहीं रखता है ढूँढता है कहीं 

जो यहाँ से कहीं न जाता था
वो यहाँ से चला गया है कहीं

आज शमशान की सी बू है यहाँ
क्या कोई जिस्म जल रहा है कहीं

हम किसी के नहीं जहाँ के सिवा
ऐसी वो ख़ास बात क्या है कहीं

तू मुझे ढूँड मैं तुझे ढूँडूँ
कोई हम में से रह गया है कहीं

कितनी वहशत है दरमियान-ए-हुजूम
जिस को देखो गया हुआ है कहीं

मैं तो अब शहर में कहीं भी नहीं
क्या मिरा नाम भी लिखा है कहीं 
Jaun Elia

किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे 

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