Chehre Ki Dhup Aankho Ki Gehrai Le Gaya - Rahat Indori

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया  || Ghazal Of Rahat Indori


 चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया 
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया 

डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सिरा करें 
ये हादिसा तो सोच की गहराई ले गया 

हालाँकि बे-ज़बान था लेकिन अजीब था 
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया 

मैं आज अपने घर से निकलने न पाऊँगा 
बस इक क़मीस थी जो मिरा भाई ले गया 

'ग़ालिब' तुम्हारे वास्ते अब कुछ नहीं रहा 
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया 
Rahat Indori

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो 

हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की 

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया