Ham Ne Khud Apni Rahnumai Ki - Rahat Indori
October 07, 2023
हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की || Ghazal Of Rahat Indori - Opal Poetry
हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की
और शोहरत हुई ख़ुदाई की
और शोहरत हुई ख़ुदाई की
मैं ने दुनिया से मुझ से दुनिया ने
सैकड़ों बार बेवफ़ाई की
खुले रहते हैं सारे दरवाज़े
कोई सूरत नहीं रिहाई की
टूट कर हम मिले हैं पहली बार
ये शुरूआ'त है जुदाई की
सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को
अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की
मंज़िलें चूमती हैं मेरे क़दम
दाद दीजे शिकस्ता-पाई की
ज़िंदगी जैसे-तैसे काटनी है
क्या भलाई की क्या बुराई की
इश्क़ के कारोबार में हम ने
जान दे कर बड़ी कमाई की
अब किसी की ज़बाँ नहीं खुलती
रस्म जारी है मुँह-भराई की
Rahat Indori
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया
बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते