अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो || Ghazal Of Jaun Elia - Opal Poetry
June 03, 2022
अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो
अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो
जान हम को वहाँ बुला भेजो
जान हम को वहाँ बुला भेजो
क्या हमारा नहीं रहा सावन
ज़ुल्फ़ याँ भी कोई घटा भेजो
नई कलियाँ जो अब खिली हैं वहाँ
उन की ख़ुश्बू को इक ज़रा भेजो
हम न जीते हैं और न मरते हैं
दर्द भेजो न तुम दवा भेजो
धूल उड़ती है जो उस आँगन में
उस को भेजो सबा सबा भेजो
ऐ फकीरो गली के उस गुल की
तुम हमें अपनी ख़ाक-ए-पा भेजो
शफ़क़-ए-शाम-ए-हिज्र के हाथों
अपनी उतरी हुई क़बा भेजो
कुछ तो रिश्ता है तुम से कम-बख़्तों
कुछ नहीं कोई बद-दुआ' भेजो
Jaun Elia
इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
बड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैं