इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं || Ghazal Of Jaun Elia - Opal Poetry
June 03, 2022
इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ कि घर गया हूँ मैं
क्या बताऊँ कि मर नहीं पाता
जीते-जी जब से मर गया हूँ मैं
अब है बस अपना सामना दर-पेश
हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं
वही नाज़-ओ-अदा वही ग़म्ज़े
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं
अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
कि यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाया
जब कि वाँ उम्र भर गया हूँ मैं
तुम से जानाँ मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरह ख़ुद से डर गया हूँ मैं
कू-ए-जानाँ में सोग बरपा है
कि अचानक सुधर गया हूँ मैं
Jaun Elia
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो