इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं || Ghazal Of Jaun Elia - Opal Poetry


इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं


 इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं 
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं 

कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ 
सुन रहा हूँ कि घर गया हूँ मैं 

क्या बताऊँ कि मर नहीं पाता 
जीते-जी जब से मर गया हूँ मैं 

अब है बस अपना सामना दर-पेश 
हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं 

वही नाज़-ओ-अदा वही ग़म्ज़े 
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं 

अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का 
कि यहाँ सब के सर गया हूँ मैं 

कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाया 
जब कि वाँ उम्र भर गया हूँ मैं 

तुम से जानाँ मिला हूँ जिस दिन से 
बे-तरह ख़ुद से डर गया हूँ मैं 

कू-ए-जानाँ में सोग बरपा है 
कि अचानक सुधर गया हूँ मैं 
Jaun Elia

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम 

अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो 


Jaun Elia Ghazals In Hindi