Top 20 Dushmani Shayari & Ghazal Collection In Hindi || Latest Dushmani Shayari In Hindi

 Top 20 Dushmani Shayari & Ghazal Collection In Hindi || Dushmani Shayari In Hindi - Opal Poetry 

दोस्तों, आज हम इस पोस्ट में Top 20 Dushmani Shayari पढ़ेंगे आपको ये Latest Dushmani Shayari पढ़ने के बाद कैसा लगा ये बात हमें जरूर बताइएगा साथ ही अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कीजिएगा |

Top 20 Dushmani Shayari Ghazal Collection In Hindi


1) इश्क़ करने की मनाही है यहाँ पर

इश्क़ करने की मनाही है यहाँ पर
दुश्मनी करते है सीना तान करके 
Umesh Maurya


2) वसिय्यत में मिली है दुश्मनी हमको यहाँ साहब

वसिय्यत में मिली है दुश्मनी हमको यहाँ साहब
नहीं चर्चे थे कम वर्ना हमारी दोस्ती के भी 
Shivam Mishra 'Mustaqil'


3) है यही उलझन , यही है बेबसी 

है यही उलझन , यही है बेबसी 
हम कहाँ को और जायें किस गली

दिन गए जब थे दिवाने हम तिरे 
अब नहीं है यार कोई तिश्नगी

सबको नीचा ही दिखाना है उसे 
और कर ही क्या सका है आदमी

उसको भूलो वो पुरानी बात है 
अब तो अच्छी कट रही है ज़िन्दगी

भाग कर आना किसी मैंदान से 
और क्या होगी सिवाये बुजदिली

जिस तरह देखा है मैंने आपको 
दुश्मनी से भी बुरी है दोस्ती 

'जौन' पीछे रह गए तो क्या हुआ 
मैं करुँगा बात सबसे काम की 
Prashant Sitapuri


4) मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी

मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी
माँ की आँखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी

मौत का आना तो तय है मौत आएगी मगर
आप के आने से थोड़ी ज़िंदगी बढ़ जाएगी

इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप
शहर वालों से हमारी दुश्मनी बढ़ जाएगी

आप के हँसने से ख़तरा और भी बढ़ जाएगा
इस तरह तो और आँखों की नमी बढ़ जाएगी

बेवफ़ाई खेल का हिस्सा है जाने दे इसे
तज़्किरा उस से न कर शर्मिंदगी बढ़ जाएगी 
Munawwar Rana

5) बदन के दरमियाँ मैं पस्त हूं फिर

बदन के दरमियाँ मैं पस्त हूं फिर
मोहब्बत से पुरानी दुश्मनी है 
Vikas Rajput

6) हमने फूलों से दुश्मनी कर ली

हमने फूलों से दुश्मनी कर ली
आज काँटों पे चल के आये हैं 
Akash Rajpoot



7) अब मुझे कोई गिला नहीं है तुम भी मेरे हो वो भी मेरा

अब मुझे कोई गिला नहीं है तुम भी मेरे हो वो भी मेरा
सभी से अपना वास्ता है सभी से अपनी दुश्मनी है 
Parwez Akhtar


8) दुश्मनी से या किसी को दोस्ती से ख़ौफ़ है

दुश्मनी से या किसी को दोस्ती से ख़ौफ़ है
आदमी को अब तो केवल आदमी से ख़ौफ़ है

आप ये कहते हैं मुझसे 'डर नहीं मैं साथ हूँ'
सच तो ये है यार मुझको आप ही से ख़ौफ़ है

मेरी बर्बादी का किस्सा सुन लिया था इक दफ़ा
बस तभी से आशिक़ों को आशिक़ी से ख़ौफ़ है

चमचमाती आपकी दुनिया मुबारक़ आपको
हम तो अंधे हैं सो हमको रौशनी से ख़ौफ़ है

लाख सब कहते रहें 'इस ज़िंदगी से इश्क़ है'
पर हक़ीक़त ये है 'सबको ज़िंदगी से ख़ौफ़ है'

इस तरह डरने लगे हैं हम तुम्हारे इश्क़ से
जिस तरह से मुजरिमों को हथकड़ी से ख़ौफ़ है 
Rituraj kumar



9) राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ

राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ

ग़म लगे रहते हैं हर आन ख़ुशी के पीछे
दुश्मनी धूप की है साया-ए-दीवार के साथ

किस तरह अपनी मोहब्बत की मैं तकमील करूँ
ग़म-ए-हस्ती भी तो शामिल है ग़म-ए-यार के साथ 
    
 लफ़्ज़ चुनता हूँ तो मफ़्हूम बदल जाता है
इक न इक ख़ौफ़ भी है जुरअत-ए-इज़हार के साथ

दुश्मनी मुझ से किए जा मगर अपना बन कर
जान ले ले मिरी सय्याद मगर प्यार के साथ

दो घड़ी आओ मिल आएँ किसी 'ग़ालिब' से 'क़तील'
हज़रत 'ज़ौक़' तो वाबस्ता हैं दरबार के साथ 
Qateel Shifai


10) रात दिन चैन हम ऐ रश्क-ए-क़मर रखते हैं 

रात दिन चैन हम ऐ रश्क-ए-क़मर रखते हैं 
शाम अवध की तो बनारस की सहर रखते हैं 

भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया 
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं 

ढूँढ लेता मैं अगर और किसी जा होते 
क्या कहूँ आप दिल-ए-ग़ैर में घर रखते हैं  
    
अश्क क़ाबू में नहीं राज़ छुपाऊँ क्यूँकर 
दुश्मनी मुझ से मिरे दीदा-ए-तर रखते हैं 

कैसे बे-रहम हैं सय्याद इलाही तौबा 
मौसम-ए-गुल में मुझे काट के पर रखते हैं 

कौन हैं हम से सिवा नाज़ उठाने वाले 
सामने आएँ जो दिल और जिगर रखते हैं  
 
दिल तो क्या चीज़ है पत्थर हो तो पानी हो जाए 
मेरे नाले अभी इतना तो असर रखते हैं 

चार दिन के लिए दुनिया में लड़ाई कैसी 
वो भी क्या लोग हैं आपस में शरर रखते हैं 

हाल-ए-दिल यार को महफ़िल में सुनाऊँ क्यूँ कर 
मुद्दई कान उधर और इधर रखते हैं   
        
जल्वा-ए-यार किसी को नज़र आता कब है 
देखते हैं वही उस को जो नज़र रखते हैं 

आशिक़ों पर है दिखाने को इताब ऐ 'जौहर' 
दिल में महबूब इनायत की नज़र रखते हैं   
     
 अश्क क़ाबू में नहीं राज़ छुपाऊँ क्यूँकर 
दुश्मनी मुझ से मिरे दीदा-ए-तर रखते हैं 

कैसे बे-रहम हैं सय्याद इलाही तौबा 
मौसम-ए-गुल में मुझे काट के पर रखते हैं 

कौन हैं हम से सिवा नाज़ उठाने वाले 
सामने आएँ जो दिल और जिगर रखते हैं

 दिल तो क्या चीज़ है पत्थर हो तो पानी हो जाए 
मेरे नाले अभी इतना तो असर रखते हैं 

चार दिन के लिए दुनिया में लड़ाई कैसी 
वो भी क्या लोग हैं आपस में शरर रखते हैं 

हाल-ए-दिल यार को महफ़िल में सुनाऊँ क्यूँ कर 
मुद्दई कान उधर और इधर रखते हैं

 जल्वा-ए-यार किसी को नज़र आता कब है 
देखते हैं वही उस को जो नज़र रखते हैं 

आशिक़ों पर है दिखाने को इताब ऐ 'जौहर' 
दिल में महबूब इनायत की नज़र रखते हैं  
Lala Madhav Ram Jauhar



11) उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

हम ख़ुल्द से निकल तो गए हैं पर ऐ ख़ुदा
इतने से वाक़िए का फ़साना बहुत हुआ

अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उस से ज़रा सा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ

अब क्यूंन ज़िंदगी पे मोहब्बत को वार दें
इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ

अब तक तो दिल का दिल से तआरुफ़ न हो सका
माना कि उस से मिलना मिलाना बहुत हुआ

क्या क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ

कहता था नासेहों से मिरे मुंह न आइयो
फिर क्या था एक हू का बहाना बहुत हुआ

लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद-'फ़राज़' तुझ से कहा न बहुत हुआ 
Ahmad Faraz


12) अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता 

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता 
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता 

कोई फ़ित्ना ता-क़यामत न फिर आश्कार होता 
तिरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता 

जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता 
तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता 

ग़म-ए-इश्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खाते 
ये वो ज़हर है कि आख़िर मय-ए-ख़ुश-गवार होता 

ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती 
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता 

न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में 
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता 

तिरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते 
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ए'तिबार होता 

ये वो दर्द-ए-दिल नहीं है कि हो चारासाज़ कोई 
अगर एक बार मिटता तो हज़ार बार होता 

गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी 
मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता 

मुझे मानते सब ऐसा कि अदू भी सज्दे करते 
दर-ए-यार काबा बनता जो मिरा मज़ार होता 

तुम्हें नाज़ हो न क्यूँकर कि लिया है 'दाग़' का दिल 
ये रक़म न हाथ लगती न ये इफ़्तिख़ार होता 
Dagh Dehlvi



13) दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता 

दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता 
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए 
Nida Fazli


14) दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम

दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे 
Bashir Badr


15) चारपाई पे आ उतारी है

चारपाई पे आ उतारी है
जिंदगी जिंदा लाश भारी है

आप दुख दे रहे है रो रहा हुँ
और ये फिलहाल जारी है

रोना लिखा गया रोते है
जिम्मेदारी तो जिम्मेदारी है

मेरी मर्जी जहाँ भी सर्फ़ करु
जिंदगी मेरी है, तुम्हारी है

दुश्मनी के हजारो दर्जे है
आखिरी दर्जा रिशतादारी है 
Afkar Alvi


16) दोस्ती जब किसी से की जाए

दोस्ती जब किसी से की जाए 
दुश्मनों की भी राय ली जाए 
Rahat Indori


17) मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा

मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इस के बा'द मिरा इम्तिहान क्या लेगा

ये एक मेला है वा'दा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर इक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ कि फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उस का हो नहीं सकता बता न देना उसे
लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता 'वसीम'
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा 
Waseem Barelvi


18) वो मेरी पीठ में खंजर जरूर उतारेगा 

वो मेरी पीठ में खंजर जरूर उतारेगा 
मगर निगाह मिलेगी तो कैसे मारेगा? 
Waseem Barelvi

Waseem Barelvi Shayari Dushmani Shayari


19) दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे 
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों 
Bashir Badr


20) दौलत के साथ मुफ़्त में आती है दुश्मनी

दौलत के साथ मुफ़्त में आती है दुश्मनी
मैं इसलिए भी रहता हूँ मनहूस धन से दूर 
Shekhar uttarakhandi

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