Hath Khali Hai Tere Shahar Se Jate Jate - Rahat Indori

हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते | Rahat Indori Ghazal In Hindi | Sad Love Ghazal In Hindi


 हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते

अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते

रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते

मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था
तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते

मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
Rahat Indori

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है

 तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के


हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते rahat indori ghazal in hindi