Bair Duniya Se Kabile Se Larai Lete - Rahat Indori
October 07, 2023
बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते || Ghazal Of Rahat Indori - Opal Poetry
बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते
एक सच के लिए किस किस से बुराई लेते
एक सच के लिए किस किस से बुराई लेते
आबले अपने ही अँगारों के ताज़ा हैं अभी
लोग क्यूँ आग हथेली पे पराई लेते
बर्फ़ की तरह दिसम्बर का सफ़र होता है
हम उसे साथ न लेते तो रज़ाई लेते
कितना मानूस सा हमदर्दों का ये दर्द रहा
इश्क़ कुछ रोग नहीं था जो दवाई लेते
चाँद रातों में हमें डसता है दिन में सूरज
शर्म आती है अँधेरों से कमाई लेते
तुम ने जो तोड़ दिए ख़्वाब हम उन के बदले
कोई क़ीमत कभी लेते तो ख़ुदाई लेते
Rahat Indori
हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की
जो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं