Bair Duniya Se Kabile Se Larai Lete - Rahat Indori

बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते  || Ghazal Of Rahat Indori - Opal Poetry


 बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते 
एक सच के लिए किस किस से बुराई लेते 

आबले अपने ही अँगारों के ताज़ा हैं अभी 
लोग क्यूँ आग हथेली पे पराई लेते 

बर्फ़ की तरह दिसम्बर का सफ़र होता है 
हम उसे साथ न लेते तो रज़ाई लेते 

कितना मानूस सा हमदर्दों का ये दर्द रहा 
इश्क़ कुछ रोग नहीं था जो दवाई लेते 

चाँद रातों में हमें डसता है दिन में सूरज 
शर्म आती है अँधेरों से कमाई लेते 

तुम ने जो तोड़ दिए ख़्वाब हम उन के बदले 
कोई क़ीमत कभी लेते तो ख़ुदाई लेते 
Rahat Indori

हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की 

जो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं 

बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते