Dilon Me Aag Labo Par Gulaab Rakhte hai - Rahat Indori

 दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं || Ghazal Of Rahat Indori


दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं 
सब अपने चेहरों पे दोहरी नक़ाब रखते हैं 

हमें चराग़ समझ कर बुझा न पाओगे 
हम अपने घर में कई आफ़्ताब रखते हैं 

बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आशना भी नहीं 
इसी में ख़ुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं 

ये मय-कदा है वो मस्जिद है वो है बुत-ख़ाना 
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं 

हमारे शहर के मंज़र न देख पाएँगे 
यहाँ के लोग तो आँखों में ख़्वाब रखते हैं 
Rahat Indori

मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया 

सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए 

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं