Sab Ki Pagri Ko Hawao Me Uchhala Jaye - Rahat Indori

 सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए || Ghazal Of Rahat Indori- Opal Poetry


सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए 
सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए
 
पी के जो मस्त हैं उन से तो कोई ख़ौफ़ नहीं 
पी के जो होश में हैं उन को सँभाला जाए 

आसमाँ ही नहीं इक चाँद भी रहता है यहाँ 
भूल कर भी कभी पत्थर न उछाला जाए 
Rahat Indori

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं 

काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने 

सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए