Sham Ne Jab Palko Pe Aatish Daan Liya - Rahat Indori

शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया || Ghazal Of Rahat Indori - Opal Poetry


 शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया 
कुछ यादों ने चुटकी में लोबान लिया 

दरवाज़ों ने अपनी आँखें नम कर लीं 
दीवारों ने अपना सीना तान लिया 

प्यास तो अपनी सात समुंदर जैसी थी 
नाहक़ हम ने बारिश का एहसान लिया 

मैं ने तलवों से बाँधी थी छाँव मगर 
शायद मुझ को सूरज ने पहचान लिया 

कितने सुख से धरती ओढ़ के सोए हैं 
हम ने अपनी माँ का कहना मान लिया 
Rahat Indori

 ये ख़ाक-ज़ादे जो रहते हैं बे-ज़बान पड़े 

मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया