Ye Khak Jade Jo Rahte Hai Bejabaan Pare - Rahat Indori
October 07, 2023
ये ख़ाक-ज़ादे जो रहते हैं बे-ज़बान पड़े || Ghazal Of Rahat Indori - Opal Poetry
ये ख़ाक-ज़ादे जो रहते हैं बे-ज़बान पड़े
इशारा कर दें तो सूरज ज़मीं पे आन पड़े
इशारा कर दें तो सूरज ज़मीं पे आन पड़े
सुकूत-ए-ज़ीस्त को आमादा-ए-बग़ावत कर
लहू उछाल कि कुछ ज़िंदगी में जान पड़े
हमारे शहर की बीनाइयों पे रोते हैं
तमाम शहर के मंज़र लहू-लुहान पड़े
उठे हैं हाथ मिरे हुर्मत-ए-ज़मीं के लिए
मज़ा जब आए कि अब पाँव आसमान पड़े
किसी मकीन की आमद के इंतिज़ार में हैं
मिरे मोहल्ले में ख़ाली कई मकान पड़े
Rahat Indori
जो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं
शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया